बुधवार 17 सितंबर 2025 - 16:02
भारतीय धार्मिक विद्वानों का परिचय | मौलाना सय्यद एजाज़ हसन अमरोहवी

हौज़ा /पेशकश: दनिश नामा ए इस्लाम, इन्टरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर दिल्ली

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार हिंदुस्तान का शहर अमरोहा न सिर्फ़ अपनी तारीखी एहमियत के लिए मशहूर है, बल्कि यह इल्मी और अदबी मैदान में भी एक मोतबर मरकज़ के तौर पर जाना जाता है। सदियों से यहाँ के औलमा, फ़ोक़हा, मोहद्दिसीन और मुताकल्लेमीन ने दुनिया भर में अपने इल्म­­­_का_लोहा_मनवाया। इसी शहर में मौलाना सैयद एजाज़ हसन जैसी शख्सियत जनम लेती है, जिनका इल्म और अमल आज भी रौशनी का मीनार है।

मौलाना सय्यद एजाज़ हसन अमरोहवी सन 1849 ईस्वी में अमरोहा के मोहल्ला "गुज़री" में पैदा हुए। आपके वालिद मौलाना सैयद अली हसन अपने वक़्त के अज़ीम आलिम थे।मौलाना सैयद एजाज़ हसन ने इब्तिदाई तालीम अपने वालिद से हासिल की।बाद में, मौलाना सैयद अहमद हुसैन से कस्ब-ए-फ़ैज़ किया।आपने आला तालीम के लिए शहर-ए-इल्म व इज्तेहाद लखनऊ का रुख़ किया,जहाँ आपने फ़िक़्ह की तालीम मुफ़्ती सैयद मोहम्मद अब्बास शूश्तरी से हासिल की। इल्म-ए-कलाम में आपने साहिब-ए-"अबक़ातुल अनवार" अल्लामा मीर हामिद हुसैन मूसवी जैसे अकाबिर औलमा से फ़ैज़ पाया। आपकी इल्मी महारत ने ना सिर्फ़ आपको एक अज़ीम फ़क़ीह और मोहद्दिस बनाया,बल्कि इल्म-ए-कलाम में भी यग़ाना-ए-रोज़गार शख्सियत के तौर पर पहचाना गया।

मौलाना सय्यद एजाज़ हसन की इल्मी तरक़्क़ी की एक और अहम अलामत उनके असातिज़ा का ऐतमाद था। मुफ़्ती मोहम्मद अब्बास शूश्तरी ने उन्हें अपना ख़ास शागिर्द तस्लीम किया,और उन्हें इल्मी सनद के तौर पर दो दस्तावेज़ अता किए।ये सनदें मौलाना की इल्मी सलाहियत, ज़हानत और तदरीसी सलाहियत की गवाही देती हैं।

सन 1891 ईस्वी में मौलाना सैयद एजाज़ हसन को ऑनरेरी मजिस्ट्रेट (सदर) मुंतख़ब किया गया। मौसूफ़ ने इस ओहदे को सिर्फ़ ज़ाती मफ़ाद के लिए क़बूल नहीं किया,बल्कि अवामी ख़िदमत, मज़लूमों की दादरसी और मुआशरती इस्लाह के लिए किया।आपके हुस्न-ए-अख़्लाक़, इल्म से मुहब्बत और बेलौस ख़िदमात ने मौलाना को न सिर्फ़ अहल-ए-अमरोहा बल्कि पूरे समाज का हक़ीकी रहनुमा बना दिया।आप समाज में भाईचारे, मुहब्बत और अख़्लाक़ को पसंद फ़रमाते थे।

मौलाना ज़ोहद और क़नाअत में बे मिसाल थे।उनकी क़नाअत और दयानत की यह मिसाल भी मशहूर है कि नज़र हुसैन नाम के एक शख़्स ने पच्चीस हज़ार रुपये,(उस ज़माने की बड़ी रक़म) बतौर अ़तिया उनकी औलाद के लिए मुख़्तस करना चाहा,लेकिन आपने इंकार कर दिया,और सारी रक़म मदरसा "सैयद उल मदारिस" अमरोहा को दे दी, यह वाक़िआ उनकी क़नाअत और इसार व क़ुर्बानी की अक्कासी करता है।

आप मदरसा ए सैयद उल मदारिस की तरक़्क़ी के लिए हमेशा कोशां रहे,आप ही की जानफ़िशानी की वजह से यह मदरसा दिन दूगनी रात चौगुनी तरक़्क़ी करता रहा। मौसूफ़ ने मोहल्ला लकड़ा की "मस्जिद इब्दाल मुहम्मद" के औक़ाफ़ भी वापस करवाए।

इसके अलावा मौलाना ने "शिया कॉलेज" लखनऊ की तरक़्क़ी में एक अहम किरदार अदा किया है, जो नाक़ाबिले फ़रामोश है।शिया कॉलेज आज भी हिंदुस्तान के मुमताज़ तालीमी इदारों में शुमार होता है। अल्लामा सैयद एजाज़ हसन ने तमाम तर मस्रूफ़ियात के बावजूद तस्नीफ़ व तालीफ़ के मैदान में भी क़लमी जोहर दिखाए,और सैंकड़ों की तादाद में क़ीमती इल्मी आसार छोड़े, जिनमें:मफातिह़ुल मतालिब फी ख़िलाफ़त अली इब्ने अबी तालिब, तफ़्सीरुल आयात (मौज़ूई तफ़्सीर), मआरिज़ुल फ़ुर्क़ान फी उलूमिल क़ुरआन, सबी़लुल मुस्तरशिदीन इला मआरिफ़ुल यक़ीन, मवाहिबुल मकासिब व मफातिह़ुल मतालिब, अल-जवाहेरुल मुज़ीआ, मुरक़्क़ा ए करबला, तारीखुल असहाब, रिसाला उसूल-ए-दीन, उसूलुस्सुन्ना, फ़लाहुस्साइल, और मेराजुल इबाद वग़ैरह शामिल हैं।

मुफ़्ती मोहम्मद अब्बास शूश्तरी ने उन्हें, ना सिर्फ़ अपना ख़ास शागिर्द समझा बल्कि अपनी छोटी साहबज़ादी का अक़्द भी इसी शागिर्द-ए-रशीद से किया। ख़ुदावंदे आलम ने आपको 6 फ़र्ज़ंद अता फ़रमाए, जो इन नामों से पहचाने गए: सैयद मुमताज़ हसन, सैयद इम्तियाज़ हुसैन, सैयद मोहम्मद सिब्तैन, सैयद अहमद हसनैन, मौलाना सैयद नसीम हसन हिलाल, सैयद सिब्ते अब्बास।

आख़िरकार ये इल्म व अदब का माहताब 1922 ईस्वी को गुरूब हो गया। नमाज़े जनाज़ा के बाद हज़ारों आह व बुका के साथ  इमामबरगाह मुसम्मात सुगरन अमरोहा मे  दफ़्न कर दिया गया।
माखूज़ अज़: नुजूमुल हिदाया, तहक़ीक़ो तालीफ़: मौलाना सैयद ग़ाफ़िर रिज़वी फ़लक छौलसी व मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी जिल्द-10 पेज-123 दानिशनामा ए इस्लाम इंटरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर, दिल्ली, 2024 ईस्वी।

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